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सत्य कोई रंग नहीं जानता है – UPSC Hindi Essay 2025
यह निबंध UPSC 2025 परीक्षा के लिए लिखित “सत्य कोई रंग नहीं जानता है” विषय पर आधारित है। इसमें सत्य की सार्वभौमिकता, समानता और मानवीय मूल्यों की गहराई को अभिव्यक्त किया गया है।
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Description

सत्य कोई रंग नहीं जानता है UPSC Essay 2025

भूमिका

मानव जीवन का आधार सत्य है। यह वह दीपक है जिसकी रोशनी में मनुष्य का विवेक जगमगाता है। असत्य चाहे कितना भी आकर्षक या रंगीन क्यों न लगे, उसकी चकाचौंध क्षणिक होती है। सत्य की शक्ति यह है कि उसे सजाने-संवारने की कोई आवश्यकता नहीं। वह स्वयं इतना तेजस्वी है कि अंधकार को चीरकर बाहर आ ही जाता है। यही कारण है कि विद्वानों ने कहा है, सत्य कोई रंग नहीं जानता है।रंग का संबंध सीमाओं से है, परंतु सत्य असीम है। रंग मनुष्य को बाँट सकते हैं, पर सत्य सबको जोड़ता है। रंग व्यक्ति को पहचान से जोड़ते हैं, पर सत्य को किसी पहचान की ज़रूरत नहीं। सत्य की यही निरपेक्षता उसे सर्वोच्च बनाती है।

सत्य की वास्तविकता

सत्य केवल तथ्य का दूसरा नाम नहीं। तथ्य समय और परिस्थिति बदलने पर बदल सकते हैं, किंतु सत्य शाश्वत रहता है। सूरज पूर्व से उगता है, यह तथ्य है। लेकिन “प्रकाश का अंधकार को मिटाना” सत्य है, क्योंकि यह हर परिस्थिति में लागू होता है। सत्य का स्वरूप वैसा ही है जैसे पानी, जो अपनी मूल अवस्था में रंगहीन और पारदर्शी होता है। यदि हम उसमें रंग घोल दें तो वह क्षणभर के लिए सुंदर लग सकता है, परंतु उसकी शुद्धता नष्ट हो जाती है। इसी प्रकार सत्य को जब हम स्वार्थ, राजनीति या अहंकार के रंग में रंगते हैं, तो उसकी चमक कम हो जाती है।

सत्य और रंग का द्वंद्व

रंग मनुष्य के जीवन को सुंदर बनाते हैं, लेकिन जब इन्हें हम सत्य से जोड़ देते हैं तो यह भ्रामक हो जाता है। सफेद को हम सत्य और पवित्रता से जोड़ते हैं, परंतु क्या कोई झूठ सफेद वस्त्र पहनकर सत्य हो जाता है? काला रंग अक्सर नकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है, पर क्या कोई सत्य यदि काले वस्त्रों में हो तो वह झूठा हो जाएगा? स्पष्ट है कि सत्य का मूल्यांकन रंगों से नहीं, बल्कि उसकी सार्थकता और स्थायित्व से किया जाना चाहिए।

भारतीय परंपरा में सत्य

भारतीय संस्कृति ने सत्य को सर्वोच्च धर्म माना है। ऋग्वेद में कहा गया है, सत्यं बृहदृतं उग्रम् अर्थात् सत्य ही महान और कठोर है। उपनिषदों का उद्घोष है, सत्यमेव जयते नानृतम्। महाभारत में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को यही उपदेश दिया था कि धर्म की जड़ सत्य है। महात्मा गांधी ने अपने जीवन का आधार ही सत्य और अहिंसा को बनाया। उनका मानना था, सत्य ही ईश्वर है और ईश्वर ही सत्य है। गांधीजी का यह दृष्टिकोण दर्शाता है कि सत्य का कोई जातीय या धार्मिक रंग नहीं होता।

धर्म और सत्य की समानता

सभी धर्मों ने अलग-अलग रूपों में सत्य की महिमा गाई है। बुद्ध ने कहा, अप्प दीपो भव, अर्थात् स्वयं अपने भीतर सत्य का दीप जलाओ। कुरान में लिखा है, अल्लाह हक़ है, यानी अल्लाह स्वयं सत्य है। बाइबिल कहती है, “Truth shall set you free”। इन सभी उद्धरणों से स्पष्ट है कि सत्य किसी एक धर्म का नहीं, बल्कि समस्त मानवता का है।

साहित्य और सत्य

साहित्यकारों ने भी सत्य को रंगहीनता से जोड़ा है। कबीर ने कहा, साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। जाके हिरदै साँच है, ताके हिरदै आप॥तुलसीदास ने रामचरितमानस में लिखा, सत्यं शिवं सुंदरम्। प्रेमचंद की कहानियों में भी हमें यही शिक्षा मिलती है कि असत्य और दिखावे से समाज का कल्याण नहीं, बल्कि पतन होता है। साहित्य हमें यह समझाता है कि सत्य की सबसे बड़ी खूबी उसकी सादगी है।

इतिहास और सत्य

इतिहास गवाह है कि सत्य को चाहे कितनी भी देर के लिए दबा दिया जाए, वह अंततः प्रकट होकर विजय प्राप्त करता है। राजा हरिश्चंद्र ने सत्य के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया, पर झूठ का सहारा नहीं लिया। संत मीरा ने सत्य और भक्ति के लिए समाज की आलोचना को सहा, लेकिन अपने मार्ग से विचलित नहीं हुईं। स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास भी यही बताता है कि सत्य और अहिंसा के बल पर एक निहत्था देश साम्राज्यवादी शक्ति को हरा सकता है। इन उदाहरणों से सिद्ध होता है कि सत्य की शक्ति किसी भी रंग या रूप से कहीं अधिक प्रभावशाली होती है।

विज्ञान और सत्य

विज्ञान सत्य की खोज का ही दूसरा नाम है। गुरुत्वाकर्षण का नियम सब पर लागू होता है, चाहे कोई किसी भी रंग या जाति का हो। आग सबको जलाती है और जल सबकी प्यास बुझाता है। पृथ्वी गोल है, यह सत्य है, इस पर न कोई राजनीति का रंग चढ़ सकता है और न कोई सामाजिक पक्षपात। विज्ञान हमें यह सिखाता है कि सत्य सार्वभौमिक है, वह किसी की संपत्ति नहीं।

सामाजिक जीवन में सत्य की आवश्यकता

समाज में अक्सर लोग सत्य को अपने स्वार्थ अनुसार रंगने का प्रयास करते हैं। राजनीति में जातिवाद और संप्रदायवाद के नाम पर सत्य को तोड़ा-मरोड़ा जाता है। व्यापार में लोग झूठे विज्ञापन और दिखावे का सहारा लेकर ग्राहकों को भ्रमित करते हैं। व्यक्तिगत जीवन में लोग रिश्तों को झूठे वादों और आडंबर से रंग देते हैं। परंतु इन सबका परिणाम क्या होता है? टूटे हुए रिश्ते, खोया हुआ विश्वास और बिगड़ा हुआ समाज। केवल सत्य ही वह गोंद है, जो समाज को स्थायित्व देता है।

मनोवैज्ञानिक दृष्टि से सत्य

मानव मस्तिष्क झूठ और असत्य से बोझिल हो जाता है। असत्य का सहारा लेने वाला व्यक्ति सदैव डर और संशय में जीता है। जबकि सत्य का पालन करने वाला निश्चिंत रहता है, क्योंकि उसे छिपाने के लिए कोई आडंबर नहीं करना पड़ता। मनोविज्ञान की दृष्टि से भी सत्य व्यक्ति को मानसिक शांति, आत्मविश्वास और संतोष प्रदान करता है।

आधुनिक युग और सत्य

आज के सूचना युग में झूठ को रंग-बिरंगे रूप में प्रस्तुत करना आसान हो गया है। सोशल मीडिया पर नकली खबरें और अफवाहें फैलाना आम है। राजनीति में चमकदार भाषण और आकर्षक घोषणाएँ सत्य को ढकने का काम करती हैं। विज्ञापनों में उत्पादों को चमकदार रंगों से सजाकर असत्य को सत्य जैसा दिखाया जाता है। किन्तु अंततः जब पर्दा हटता है, तो सत्य ही सामने आता है। यही कारण है कि आज के समय में सत्य और भी महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि असत्य का भ्रम पहले से कहीं अधिक है।

दार्शनिक दृष्टिकोण

दार्शनिक मानते हैं कि सत्य रंगहीन है क्योंकि यह द्वंद्व से परे है। रंग का अर्थ है विभाजन, काला-सफेद, अच्छा-बुरा, अमीर-गरीब। पर सत्य इन विभाजनों से परे है। यह ठीक वैसे ही है जैसे आकाश, जो किसी एक रंग का नहीं, बल्कि सब रंगों को समेटे हुए भी अपनी शून्यता में स्वतंत्र है।

व्यावहारिक जीवन में सत्य की शक्ति

सत्य केवल एक आदर्श नहीं, बल्कि व्यवहारिक जीवन की आवश्यकता है। परिवार में विश्वास और प्रेम का आधार सत्य है। मित्रता की स्थिरता ईमानदारी पर निर्भर करती है। व्यापारिक सफलता भी सत्य और पारदर्शिता से ही मिलती है। झूठ से बनाए गए रिश्ते काँच के गिलास की तरह होते हैं, बाहरी रूप से सुंदर, पर हल्के से झटके में टूट जाते हैं। सत्य से बने रिश्ते लोहे की तरह मज़बूत होते हैं।

निष्कर्ष

सत्य की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि वह किसी रंग, रूप या सीमा में बंधा नहीं। सत्य न हिंदू है न मुसलमान, न अमीर है न गरीब, न गोरा है न काला। सत्य की पहचान उसकी शाश्वतता और सार्वभौमिकता है। रंग असत्य को क्षणिक रूप से आकर्षक बना सकते हैं, पर सत्य को रंगने की आवश्यकता ही नहीं। उसकी अपनी आभा इतनी प्रखर है कि वह अंधकार को चीरकर सामने आ ही जाता है। अतः यह निबंध हमें यह शिक्षा देता है कि  सत्य कोई रंग नहीं जानता, क्योंकि सत्य स्वयं प्रकाश है। प्रकाश को दीपक की लौ की तरह सजाने की आवश्यकता नहीं, वह स्वयं ही जग को आलोकित कर देता है।


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