Description
Jungle Aur Sabhyata UPSC Hindi Essay 2024
जंगल सभ्यताओं से पहले आते हैं, और रेगिस्तान उनके बाद आते हैं
भूमिका
प्रकृति हमारी माँ है, और मानव सभ्यता उसकी संतान। जंगल इस धरती का पहला हृदय हैं, वे जीवन को जन्म देते हैं, वायु में प्राण भरते हैं, और धरती को हरियाली से ढक देते हैं।
सभ्यता का आरंभ इन्हीं जंगलों की गोद से हुआ। मनुष्य ने भोजन, पानी, आश्रय और औषधि सब कुछ प्रकृति से ही पाया। परंतु जैसे-जैसे सभ्यताएँ विकसित हुईं, मनुष्य ने स्वयं को प्रकृति से अलग समझ लिया। उसने जंगल काटे, नदियाँ बाँधीं, पहाड़ खोदे और भूमि का दोहन किया। परिणामस्वरूप, जहाँ कभी हरे-भरे वन थे, वहाँ अब सूखे रेगिस्तान फैल गए। इसलिए यह कथन केवल एक भूगोलिक सच्चाई नहीं, बल्कि मानव के इतिहास और भविष्य की चेतावनी है, “जंगल सभ्यताओं से पहले आते हैं, और रेगिस्तान उनके बाद आते हैं।”
जंगल: सभ्यता की जन्मभूमि
जब धरती पर जीवन प्रारंभ हुआ, तब सबसे पहले पेड़-पौधे उगे। उनके बाद पशु आए, और बहुत बाद में मनुष्य। मनुष्य ने सबसे पहले जंगलों में रहना सीखा। वह पेड़ों के फलों से पेट भरता था, पेड़ों की लकड़ी से आश्रय बनाता था, और नदियों के किनारे बसकर जीवन जीता था। जंगलों ने मनुष्य को सिखाया, कैसे सहयोग करना है, कैसे संतुलन बनाए रखना है, और कैसे प्रकृति से लेना और लौटाना है। यही प्रकृति का पहला विद्यालय था, जहाँ से मानवता ने अपनी सभ्यता की नींव रखी।
सभ्यता का उदय और पर्यावरण का दोहन
जैसे-जैसे मनुष्य ने सोचने और बनाने की क्षमता पाई, उसने गाँव, नगर, और साम्राज्य बसाए। कृषि के लिए उसने जंगल काटे, नदियों पर बाँध बनाए, और धरती के संसाधनों का दोहन शुरू किया। यहीं से एक नई दिशा की शुरुआत हुई, प्रकृति से सहयोग की जगह उस पर अधिकार का भाव। सभ्यता का अर्थ केवल प्रगति नहीं होता; वह एक परीक्षा भी होती है, क्या मनुष्य अपनी शक्ति का उपयोग संतुलित ढंग से करेगा या विनाश के लिए? दुर्भाग्य से, इतिहास बताता है कि जब भी सभ्यताएँ अत्यधिक विलासी हुईं, उन्होंने प्रकृति को चोट पहुँचाई, और अंततः स्वयं नष्ट हो गईं।
इतिहास के उदाहरण: जहाँ जंगल थे, वहाँ अब रेगिस्तान हैं
(1) मेसोपोटामिया (टाइग्रिस–यूफ्रेटीज़ की भूमि): यह मानव इतिहास की सबसे प्राचीन सभ्यता मानी जाती है। यहाँ कभी विशाल जंगल और उपजाऊ भूमि थी। परंतु अत्यधिक खेती, सिंचाई और वनों की कटाई के कारण मिट्टी बंजर हो गई। नदियाँ सिकुड़ गईं, और वह भूमि जो कभी “स्वर्ग” कहलाती थी, अब धूल और रेत का मैदान बन चुकी है।
(2) सिंधु घाटी सभ्यता: मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे नगर हरे-भरे मैदानों में बसे थे। पर जलवायु परिवर्तन और वनों की अंधाधुंध कटाई ने यहाँ के पर्यावरण को प्रभावित किया। नदियाँ सूख गईं और सभ्यता धीरे-धीरे समाप्त हो गई।
(3) मिस्र की सभ्यता: नाइल नदी के किनारे उपजी मिस्र की सभ्यता भी इसी चेतावनी की मिसाल है। नाइल ने जीवन दिया, पर अत्यधिक दोहन ने उसके आसपास के क्षेत्रों को रेगिस्तान में बदल दिया।
(4) माया सभ्यता (अमेरिका): माया सभ्यता के लोग अत्यधिक पेड़ काटकर पत्थरों के मंदिर और नगर बनाते रहे। पर जब जंगल खत्म हुए, तो न केवल उनकी भूमि सूख गई, बल्कि उनका पूरा समाज ढह गया। इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि जब भी मनुष्य ने जंगलों को नष्ट किया, उसके बाद केवल रेगिस्तान बचा।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
विज्ञान भी यही कहता है कि जंगल धरती के “फेफड़े” हैं। वे कार्बन डाइऑक्साइड को सोखते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं। वे वर्षा लाते हैं, मिट्टी को उपजाऊ रखते हैं और तापमान को नियंत्रित करते हैं। जब जंगल नष्ट होते हैं, बारिश घट जाती है, भूमि की नमी कम होती है, नदियाँ सूख जाती हैं, और धीरे-धीरे रेगिस्तान फैलने लगता है। आज अफ्रीका में “सहारा रेगिस्तान” हर साल 50 किलोमीटर तक बढ़ रहा है। भारत में भी राजस्थान और बुंदेलखंड जैसे क्षेत्र वनों की कमी से सूखते जा रहे हैं। यह केवल प्रकृति का नहीं, बल्कि हमारी सभ्यता के भविष्य का संकट है।
मानव की अंधी दौड़
आधुनिक मनुष्य ने अपनी प्रगति को विलासिता से जोड़ लिया है। उसे लगता है कि बड़ी इमारतें, चौड़ी सड़कें और ऊँचे बाँध ही विकास हैं। लेकिन हर पेड़ जो काटा जाता है, हर नदी जो गंदी होती है, हर खेत जो सूखता है, वह हमारे भविष्य से एक वर्ष घटा देता है। विलासिता का यह अंधापन हमें भौतिक रूप से अमीर और नैतिक रूप से निर्धन बना रहा है। हम भूल गए हैं कि जंगल केवल पेड़ों का समूह नहीं, बल्कि जीवन का स्रोत हैं। जब ये समाप्त हो जाएँगे, तो हमारे पास ऑक्सीजन, जल, या शांति कुछ भी नहीं बचेगा।
दार्शनिक दृष्टिकोण
यह कथन केवल पर्यावरण की चिंता नहीं, बल्कि मानव अहंकार पर व्यंग्य भी है। “सभ्यता” अक्सर अपने को श्रेष्ठ मान लेती है। पर जब सभ्यता प्रकृति के नियमों की अनदेखी करती है, तो वह स्वयं अपने विनाश की भूमि तैयार करती है। जंगल, सादगी, सहयोग और सह-अस्तित्व के प्रतीक हैं। रेगिस्तान, लालच, स्वार्थ और विनाश के परिणाम हैं। जब मनुष्य संतुलन में जीता है, तो वह प्रकृति का हिस्सा होता है। जब वह नियंत्रण चाहता है, तो वही नियंत्रण उसकी बर्बादी का कारण बन जाता है।
भारत की परंपरा: प्रकृति का सम्मान
भारतीय संस्कृति में हमेशा जंगलों को पूजनीय माना गया। हमारे ऋषि वन में ही तपस्या करते थे। “अरण्यक” ग्रंथों की रचना जंगलों में हुई, जो बताते हैं कि आध्यात्मिकता का उदय प्रकृति से जुड़ाव में है। पेड़ हमारे लिए देवता हैं, पीपल, तुलसी, बरगद, बेल, सभी को पवित्र माना गया है। क्योंकि हमारे पूर्वज जानते थे कि जब जंगल सुरक्षित हैं, तभी जीवन सुरक्षित है।
आधुनिक संकट और चेतावनी
आज पृथ्वी जिस संकट से गुजर रही है, वह किसी युद्ध से नहीं, बल्कि हमारी ही “सभ्यता” से उत्पन्न हुआ है। वायु प्रदूषण, जल संकट, ग्लोबल वार्मिंग, बाढ़ और सूखा, ये सभी संकेत हैं कि हम जंगलों को भूलकर रेगिस्तान की ओर बढ़ रहे हैं। अगर हमने अभी भी नहीं समझा, तो आने वाले वर्षों में शहरों की चमक के पीछे केवल धूल बचेगी। धरती की हरियाली राख में बदल जाएगी, और मनुष्य अपनी ही बनाई दुनिया में दम तोड़ देगा।
सकारात्मक दिशा: संतुलन की ओर वापसी
सब कुछ अभी खत्म नहीं हुआ है। हम चाहें तो फिर से जंगलों को जीवन दे सकते हैं। वृक्षारोपण को केवल एक अभियान नहीं, बल्कि संस्कृति बनाना होगा। बच्चों को पेड़ों से प्रेम सिखाना होगा। खेती को रासायनिक से जैविक बनाना होगा। और सबसे महत्वपूर्ण, विलासिता के स्थान पर सरलता को अपनाना होगा। जब हम फिर से प्रकृति के साथ चलना शुरू करेंगे, तो धरती हमें फिर से हरियाली लौटाएगी। जंगल फिर आएँगे, और सभ्यता फिर खिल उठेगी।
निष्कर्ष
जंगल जीवन का प्रतीक हैं, और रेगिस्तान मृत्यु का। जब मनुष्य प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर चलता है, तब सभ्यता फलती-फूलती है। पर जब वह लालच और अहंकार में प्रकृति को लूटता है, तब सभ्यता सूख जाती है, ठीक उसी तरह जैसे हरियाली के बाद रेगिस्तान आता है। इसलिए यह कथन केवल चेतावनी नहीं, बल्कि दिशा दिखाने वाला सत्य है, “जंगल सभ्यताओं से पहले आते हैं, और रेगिस्तान उनके बाद आते हैं।” अगर हम जंगलों को बचाएँगे, तो सभ्यता जिंदा रहेगी। अन्यथा, इतिहास फिर दोहराया जाएगा, जंगलों की हरियाली मिटेगी, और सभ्यता की रेत बहेगी।
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