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संतोष स्वाभाविक संपत्ति है; विलासिता कृत्रिम निर्धनता है – UPSC Hindi Essay 2024

यह UPSC 2024 परीक्षा के लिए लिखा गया हिंदी निबंध संतोष, सादगी और आत्मिक शांति के जीवन दर्शन पर आधारित है। इसमें बताया गया है कि वास्तविक संपत्ति विलासिता में नहीं, बल्कि संतोष में निहित है।
Discover this thoughtful essay exploring how true wealth lies in contentment, not luxury — a must-read for UPSC aspirants seeking ethical and philosophical depth.

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Description

संतोष स्वाभाविक संपत्ति UPSC Hindi Essay 2024

संतोष स्वाभाविक संपत्ति है; विलासिता कृत्रिम निर्धनता है

भूमिका

मानव जीवन की सबसे बड़ी खोज हमेशा सुख की रही है। हर युग, हर संस्कृति में मनुष्य ने अपने जीवन में शांति, आनंद और संतुष्टि पाने की कोशिश की है। कुछ लोगों ने इसे धन में खोजा, कुछ ने पद में, कुछ ने प्रसिद्धि में। परंतु अंततः सभी को यह एहसास हुआ कि सच्चा सुख किसी बाहरी वस्तु में नहीं, बल्कि भीतर के संतोष में है। यही भाव इस विचार में निहित है, संतोष स्वाभाविक संपत्ति है; विलासिता कृत्रिम निर्धनता है।अर्थात्, संतोष वह संपत्ति है जो भीतर से उत्पन्न होती है, जिसे कोई छीन नहीं सकता। जबकि विलासिता,  चाहे वह कितनी भी भव्य क्यों न हो, अंततः हमें और अधिक अभावग्रस्त बना देती है।

संतोष का अर्थ

“संतोष” का अर्थ है, जो हमारे पास है, उसमें सुखी रहना। इसका यह मतलब नहीं कि मनुष्य प्रगति न करे या महत्वाकांक्षी न बने, बल्कि इसका अर्थ यह है कि वह अपनी सीमाओं में भी सुख पा सके। संतोष एक मानसिक स्थिति है, न कि भौतिक अवस्था। जिसके पास कम होते हुए भी मन की शांति है, वही वास्तव में संपन्न है। और जिसके पास सब कुछ है, पर मन अस्थिर है, वह सबसे गरीब है।

विलासिता का अर्थ

“विलासिता” का अर्थ है, आवश्यकताओं से अधिक वस्तुओं की लालसा। जब जीवन की ज़रूरतें इच्छाओं में बदल जाती हैं, तो विलासिता जन्म लेती है। विलासिता हमें बाहरी रूप से धनी दिखाती है, पर भीतर से हमें निर्भर और असंतुष्ट बना देती है। हर नई चीज़, हर नया सुख कुछ क्षणों के लिए आनंद देता है, फिर हम किसी और चीज़ के पीछे भागने लगते हैं। यही कारण है कि विलासी व्यक्ति कभी संतुष्ट नहीं हो पाता। उसकी लालसा बढ़ती जाती है, जैसे समुद्र का पानी जितना पीओ, उतनी प्यास बढ़ती जाती है।

संतोष: आत्मिक समृद्धि का प्रतीक

संतोष किसी के पास होने वाली वस्तुओं की मात्रा से नहीं, बल्कि उसके दृष्टिकोण से तय होता है। एक साधु जिसके पास केवल एक चादर है, वह भी प्रसन्न हो सकता है, जबकि एक महल में रहने वाला व्यक्ति भी बेचैन हो सकता है। संतोष हमें भीतर से शांति देता है। यह हमें सिखाता है कि सुख वस्तुओं में नहीं, मन की अवस्था में है। यह एक ऐसी संपत्ति है, जो समय, परिस्थिति या भाग्य पर निर्भर नहीं करती। कबीरदास जी ने कहा था, “साईं इतना दीजिए, जा में कुटुम समाय। मैं भी भूखा न रहूँ, साधु न भूखा जाए॥” यह संतोष का सबसे सुंदर रूप है, आवश्यकतानुसार प्राप्ति और आत्मिक शांति।

विलासिता: अभाव की जड़

विलासिता बाहर से चमकदार दिखती है, पर भीतर से खोखली होती है। यह हमें वस्तुओं का दास बना देती है। जो व्यक्ति विलासिता में डूबा होता है, उसका सुख वस्तुओं पर निर्भर होता है। जैसे ही वह वस्तु जाती है, सुख भी चला जाता है। विलासिता का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव यह है कि यह इच्छाओं को बढ़ाती है, जरूरतों को नहीं। इससे व्यक्ति का मन कभी तृप्त नहीं होता। वह हमेशा और अधिक चाहता है, बड़ी गाड़ी, बड़ा घर, ऊँचा पद, अधिक प्रशंसा।
यह अंतहीन दौड़ उसे थका देती है, पर शांति नहीं देती।

उदाहरण

एक किसान है जो अपने छोटे खेत में मेहनत करता है। शाम को अपने परिवार के साथ बैठकर सादा भोजन करता है, गीत गाता है और चैन से सो जाता है। दूसरी ओर, एक करोड़पति है जिसके पास सब कुछ है, बंगला, गाड़ी, सेवक, फिर भी उसे नींद नहीं आती, क्योंकि उसे डर है कि कहीं उसका धन कम न हो जाए, या कोई उससे आगे न निकल जाए। कौन अधिक सुखी है? निश्चित ही वह किसान, क्योंकि उसके पास संतोष है। उसका मन शांत है, और वही सबसे बड़ी संपत्ति है।

संतोष और प्रगति का संबंध

कई लोग सोचते हैं कि संतोष का अर्थ है, प्रयास छोड़ देना। पर यह गलत है। संतोष आलस्य नहीं, बल्कि मानसिक स्थिरता है। यह हमें यह सिखाता है कि हम अपनी सीमाओं में रहते हुए भी सुखी रह सकते हैं, और आगे बढ़ने का आनंद ले सकते हैं। संतोष का अर्थ है, “मेहनत करो, पर परिणाम की चिंता छोड़ दो।” यही संतुलन हमें सफलता के साथ शांति भी देता है।

आध्यात्मिक दृष्टिकोण

धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी संतोष को सर्वोत्तम गुण माना गया है। भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है, “जो व्यक्ति संतोषी है, वही सच्चा योगी है।” बुद्ध ने भी कहा, “संतोष ही सबसे बड़ा धन है।” क्योंकि जब मनुष्य अपनी इच्छाओं को सीमित कर लेता है, तभी वह भीतर की शांति को अनुभव करता है। विलासिता में उलझा व्यक्ति भले ही बाहर से धनी दिखे, पर भीतर से वह अस्थिर और गरीब होता है।

समाज में संतोष का महत्व

आज का समाज भौतिकता की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है। हर व्यक्ति “ज़्यादा पाने” की होड़ में है। लोग पैसे के पीछे भागते हैं, नाम और पद के पीछे भागते हैं, पर इस दौड़ में वे अपना मानसिक संतुलन खो देते हैं। विज्ञापन, सोशल मीडिया और आधुनिक जीवनशैली ने  “विलासिता” को ही सफलता का मापदंड बना दिया है। लोग दिखावे के लिए खर्च करते हैं, और अंत में कर्ज में डूब जाते हैं। यह कृत्रिम निर्धनता है, क्योंकि धन होने के बावजूद वे भीतर से खाली हैं। यदि समाज में संतोष का भाव बढ़े, तो अपराध, प्रतिस्पर्धा और तनाव सब कम हो सकते हैं।

इतिहास और उदाहरण

(1) महात्मा गांधी: वे सादगी के प्रतीक थे। उनके पास न कोई विलासिता थी, न संपत्ति। फिर भी वे सबसे समृद्ध व्यक्ति थे, क्योंकि उनके भीतर संतोष और आत्मबल था।

(2) बुद्ध: राजमहल छोड़कर उन्होंने सच्चा सुख खोजा और पाया कि विलासिता केवल भ्रम है। संतोष ही उन्हें ज्ञान की ओर ले गया।

(3) स्वामी विवेकानंद: उन्होंने कहा, “संतोष आत्मा की शक्ति है, और असंतोष उसकी कमजोरी।” इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि इतिहास में जिन लोगों ने संतोष अपनाया, वही वास्तव में महान बने।

संतोष और मानसिक स्वास्थ्य

आज की दुनिया में अधिकतर लोग तनाव, चिंता और अवसाद से ग्रस्त हैं। इसका मुख्य कारण है, असंतोष। लोगों को अपने पास जो है, उसमें खुशी नहीं मिलती; वे हमेशा “और” की खोज में रहते हैं। संतोष मानसिक शांति देता है। जब हम अपने पास की चीज़ों का मूल्य समझते हैं, तो हमारे मन में कृतज्ञता आती है। कृतज्ञता ही खुशी की जड़ है। इसलिए जो व्यक्ति संतोषी है, वह न केवल मानसिक रूप से स्वस्थ रहता है, बल्कि दूसरों के लिए भी सुख का स्रोत बनता है।

संतोष का अभ्यास

(1) कृतज्ञता का भाव: हर दिन जो मिला है, उसके लिए धन्यवाद करें।

(2) तुलना से बचें: दूसरों से तुलना असंतोष का सबसे बड़ा कारण है।

(3) सीमित इच्छाएँ रखें: आवश्यकताओं को पहचानें, और अतिरेक से बचें।

(4) वर्तमान में जिएँ: जो है, उसे महसूस करें, भविष्य की चिंता या अतीत का पछतावा न करें।

निष्कर्ष

संतोष जीवन का वास्तविक सुख है। यह हमें भीतर से शांत, संतुलित और प्रसन्न बनाता है।
विलासिता चाहे जितनी हो, यदि मन में संतोष नहीं है, तो सब व्यर्थ है। संतोष हमें आत्मनिर्भर बनाता है, जबकि विलासिता हमें दूसरों पर निर्भर कर देती है। इसलिए यह कथन शत-प्रतिशत सत्य है, संतोष स्वाभाविक संपत्ति है; विलासिता कृत्रिम निर्धनता है।जो व्यक्ति इसे समझ लेता है, वह भले ही सामान्य जीवन जीए, पर उसका मन राजा के समान होता है, समृद्ध, शांत और प्रसन्न।


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