भारत की वायु सुरक्षा में एस-400 की सफलता से एस-500 की ओर संभावित कदम
8 और 9 मई 2025 — ये दो दिन भारत के इतिहास में हमेशा याद रखे जाएंगे। पाकिस्तान से दागे गए रॉकेट और ड्रोन, जो भारत पर हमला करने आए थे, भारतीय वायु सुरक्षा प्रणाली के सामने बेबस और बेअसर साबित हुए। टीवी और सोशल मीडिया पर जब करोड़ों भारतीयों ने इन हमलों को आसमान में ही नष्ट होते देखा, तो यह सिर्फ एक युद्ध का दृश्य नहीं था — यह भारत की अत्याधुनिक रक्षा शक्ति का खुला प्रदर्शन था। पहली बार आम जनता ने अपनी आँखों से देखा कि कैसे देश की वायु रक्षा प्रणाली ने पाकिस्तान के हर वार को हवा में ही रोक दिया। यह वह पल था जब पूरे भारत देश ने न सिर्फ गर्व महसूस किया, बल्कि यह भरोसा भी पाया कि भारत अब पहले से कहीं ज़्यादा सुरक्षित है। यह घटना केवल एक सैन्य या तकनीकी उपलब्धि नहीं थी — यह भारत के आत्मविश्वास, नेतृत्व और तैयारी का प्रतीक बन गई।
10 मई को संघर्षविराम की घोषणा इस बात का साफ़ संकेत था कि यह भारत की रक्षा प्रणाली की जीत थी। इस सफलता में “एस-400 ट्रायम्फ” प्रणाली की भूमिका बेहद अहम रही — यह वही उन्नत मिसाइल रक्षा प्रणाली है, जिसे भारत ने रूस से अपनी सुरक्षा के लिए रणनीतिक रूप से अक्टूबर 2018 में खरीदा था। यह सौदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच नई दिल्ली में आयोजित शिखर सम्मेलन के दौरान हुआ था। यह प्रणाली दुश्मन के मिसाइलों, ड्रोनों और छिपकर आने वाले विमानों को भी कई सौ किलोमीटर दूर से पहचानकर हवा में ही खत्म कर देने की ताकत रखती है। इसने यह साबित कर दिया कि सुरक्षा पर किया गया निवेश सिर्फ तकनीकी जरूरत नहीं, बल्कि देश की संप्रभुता की सबसे मजबूत ढाल है।
यह जीत उन सभी लोगों के लिए जवाब बनकर सामने आई, जो सालों से रक्षा सौदों पर राजनीतिक लाभ लेने या जनता को गुमराह करने के लिए सवाल उठाते थे। अब पूरा देश जान चुका है कि यह ‘खर्च’ नहीं, बल्कि हर भारतीय की सुरक्षा के लिए लिया गया दूरदर्शी और ज़रूरी फैसला था।
“एस-400 ट्रायम्फ” एक बेहद उन्नत और मोबाइल (चलती-फिरती) “एयर डिफेंस सिस्टम” (वायु रक्षा प्रणाली) है, जिसे जमीन से हवा में मार करने के लिए तैयार किया गया है। इसकी सबसे बड़ी ताकत यह है कि यह दुश्मन के लड़ाकू विमान, ड्रोन, क्रूज़ मिसाइल और बैलिस्टिक मिसाइल जैसे कई तरह के हवाई खतरों को एक साथ ट्रैक कर उन्हें हवा में ही खत्म कर सकती है। यह प्रणाली विशेष रूप से उन मिसाइलों को नष्ट करने में सक्षम है जो या तो ज़मीन के बहुत करीब उड़ती हैं और चतुराई से रडार और सुरक्षा प्रणालियों से बचती हुई अपने लक्ष्य तक पहुँचती हैं (जैसे – क्रूज़ मिसाइल), या फिर जो पहले अंतरिक्ष की ऊँचाई तक जाती हैं और फिर बहुत तेज़ गति से सीधे नीचे गिरती हैं (जैसे – बैलिस्टिक मिसाइलें)। इन दोनों ही मिसाइलों को रोकना दुनिया की सबसे चुनौतीपूर्ण सैन्य कार्रवाइयों में से एक है — और एस-400 इसे आसानी से अंजाम देने की क्षमता रखती है। यही कारण है कि यह प्रणाली भारत के लिए सिर्फ एक हथियार नहीं, बल्कि एक रणनीतिक ढाल है जो देश की सीमाओं को हर क्षण सुरक्षित रखती है।
एस-400 की खास बात यह है कि यह चार अलग-अलग रेंज की मिसाइलें चला सकता है, जो विभिन्न दूरी पर मौजूद हवाई खतरों को एक साथ निशाना बना सकती हैं। इसमें ‘9एम96ई’ मिसाइल 40 किलोमीटर, ‘9एम96ई2’ मिसाइल 120 किलोमीटर, ‘48एन6’ मिसाइल 250 किलोमीटर और ‘40एन6ई’ मिसाइल 400 किलोमीटर तक मार करने में सक्षम है। इसका मतलब है कि यह एक ही समय पर नजदीक, मध्यम और बहुत दूर के लक्ष्यों को ट्रैक कर उन्हें प्रभावी ढंग से नष्ट कर सकता है, जिससे हर स्तर पर सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
इसकी मिसाइलें इतनी ताकतवर हैं कि ये “मैक 15” की रफ्तार (आवाज की गति से 15 गुना तेज) से उड़ने वाले दुश्मन के लक्ष्यों को भी पकड़ सकती हैं और 35,000 मीटर (लगभग 115,000 फीट) की ऊंचाई तक मार कर सकती हैं। खासतौर पर ‘9एम96ई’ और ‘9एम96ई2’ जैसी मिसाइलें तेज रफ्तार लक्ष्यों को मुश्किल हालातों में — जैसे रडार जामिंग या खराब मौसम में — भी पहचान कर उन्हें नष्ट कर सकती हैं।
एस-500: भविष्य के युद्धों के लिए भारत की रणनीतिक तैयारी में संभावित अगला कदम
आज के दौर में, ऐसी मिसाइलें बन रही है जो बहुत तेज़ चलती हैं, दिखाई नहीं देतीं, और यहां तक कि अंतरिक्ष के पास से भी हमला कर सकती हैं। ऐसे में ज़रूरत है ऐसी सुरक्षा प्रणाली की जो इन सभी खतरों से हमारे देश को बचा सके। रूस की नई तकनीक पर आधारित मिसाइल रक्षा प्रणाली “एस-500 प्रोमेथियस” ऐसी ही एक ढाल है, जो आने वाले समय में भारत के लिए सुरक्षा का मजबूत आधार बन सकती है।
एस-500 प्रणाली बाकी मिसाइल डिफेंस सिस्टम से कहीं ज़्यादा उन्नत है। इसकी सबसे बड़ी ताकत यह है कि यह सिर्फ वायुमंडल (हमारे वातावरण) के भीतर से नहीं, बल्कि अंतरिक्ष के किनारे से आने वाली मिसाइलों को भी नष्ट कर सकती है।
एस-500 की मिसाइलें 600 किलोमीटर तक की दूरी से दुश्मन की मिसाइल को हवा में ही खत्म कर सकती हैं। यह 200 किलोमीटर की ऊँचाई तक हमला रोक सकती हैं — यानी लगभग अंतरिक्ष के किनारे तक। इसके साथ इसमें जो रडार लगा होता है (जिससे दुश्मन की चीज़ें पहचानी जाती हैं), वह 2,000 किलोमीटर दूर तक की गतिविधियों को पकड़ सकता है।
एस-500 में दो खास मिसाइलें होती हैं: ‘77एन6-एन’ और ‘77एन6-एन1’। ये मिसाइलें उन ‘हाइपरसोनिक’ (बहुत तेज़ चलने वाली) मिसाइलों को भी मार सकती हैं, जिनसे आज दुनिया के बड़े-बड़े देश डरते हैं। साथ ही, ये “अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलें” — यानी बहुत दूर से छोड़ी गई परमाणु मिसाइलें — को भी रोक सकती हैं।
अब ज़रा भारत की ज़रूरत पर आएँ। भारत के पास पहले से ही रूस का एस-400 डिफेंस सिस्टम है, जो बहुत कामयाब है। लेकिन चीन आज ऐसी मिसाइलें बना रहा है जो रडार से बच जाती हैं, और इतनी तेज़ होती हैं कि उनके आने का पता लगने के कुछ सेकंड बाद ही वे हमला कर देती हैं। एस-400 उन पर काबू पाने में सीमित हो सकता है। वहीं, एस-500 उन्हें बहुत पहले ही पहचान कर हवा में खत्म कर सकता है।
इसके अलावा, भविष्य में युद्ध सिर्फ ज़मीन पर नहीं, बल्कि अंतरिक्ष के पास भी लड़े जाएंगे — जहाँ से दुश्मन उपग्रहों या अंतरिक्ष में तैनात हथियारों से हमला कर सकता है। एस-500 ऐसी मिसाइलों को भी पहचान कर उन्हें रोक सकता है। यह न सिर्फ सैनिक ठिकानों की रक्षा करेगा, बल्कि दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों को भी ‘हाइपरसोनिक’ या “परमाणु मिसाइल” हमलों से सुरक्षित रखेगा।
अगर भारत यह प्रणाली रूस से लेता है, तो यह सिर्फ एक और हथियार खरीदने जैसा नहीं होगा, बल्कि यह एक नई सुरक्षा रणनीति अपनाने जैसा होगा। यह भारत को एशिया में सबसे उन्नत वायु रक्षा देने वाला देश बना सकता है। इससे भारत की ताकत और आत्मविश्वास दोनों बढ़ेंगे, और दुश्मन किसी भी हमले से पहले कई बार सोचने पर मजबूर होगा।
कुल मिलाकर, एस-500 सिर्फ एक मिसाइल सिस्टम नहीं है — यह भारत के लिए भविष्य की सुरक्षा का कवच साबित हो सकता है। जब दुनिया अंतरिक्ष में जंग की तैयारी कर रही है, तब एस-500 भारत को वहां मुकाबला करने की पूरी ताकत दे सकता है। यह हमारे देश को न सिर्फ आज के, बल्कि आने वाले दसियों सालों के खतरे से भी बचाने में सक्षम हो सकता है।
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